दास्तान-ए-आज़ादी – स्वतंत्रता संघर्ष में अररिया का योगदान अतुलनीय
Posted by Sulabh on August 14, 2009
नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास बसे अररिया जिले में आजादी के संघर्ष का इतिहास सुनहरा रहा है। सन 1857 की पहली जंग ए आजादी से लेकर 1942 की अगस्त क्रांति तक अररिया के सपूतों ने हर मौके पर अपनी शहादत दी और देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में उल्लेखनीय योगदान दिया। जिला वासियों को अपने इन सपूतों पर गर्व है।
इतिहास के पन्नों के मुताबिक सन 1857 में जब अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा तो जलपाईगुड़ी व ढाका में तैनात भारतीय जवानों ने अररिया जिले के नाथपुर में अंग्रेजी बंदूकों का बहादुरी के साथ सामना किया। अंग्रेजों को धूल चटाते हुए भारतीय फौजियों ने नेपाल के चतरा गद्दी में कोसी पार की और तराई जंगल मार्ग से अवध की बेगम हजरत महल का साथ देने के लिये आगे बढ़ गये। हालांकि इस दौरान कोसी की तेज धारा में उन्हें अपने कई घोड़े व सामान गंवाने पड़े लेकिन इस पार खड़ा मेजर रिचार्डसन उनका बाल भी बांका नहीं कर पाया।
बहरहाल सन 1857 के रणबांकुरों ने आजादी के जिस जज्बे का बीजारोपण किया उसका प्रतिफल बीसवीं सदी में देखने को मिला। जिले में स्वतंत्रता आंदोलन का आदिगुरु पं. रामदेनी तिवारी द्विजदेनी को माना जाता है। उनके व बाबू बसंत सिंह के नेतृत्व में सेनानियों की जो फौज इस इलाके में तैयार हुई, उसने अंग्रेजों को हर वक्त नाक में दम किये रखा। गांधी जी अनन्य सहयोगी रामलाल मंडल इसी जिले के भोड़हर गांव के थे। उन्होंने दंडी यात्रा में हिस्सा लिया था। उनकी आवाज बेहद सुरीली थी और वे बापू को रामायण सुनाया करते थे।
अगस्त क्रांति के मौके पर अररिया के सेनानियों ने अंग्रेजी बंदूकों का डटकर सामना किया। द्विजदेनी जी गिरफ्तार हो गये। भागलपुर सेंट्रल जेल में पुलिस ने उन्हें इतना पीटा कि वे शहीद हो गये। बीस सितंबर 1942 को फारबिसगंज में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकल रहा था। पुलिस ने जुलूस पर गोली चला दी। इस गोलीबारी में सुंदर लाल ततमा मौके पर ही शहीद हो गये। वहीं, रानीगंज थाने पर सेनानियों द्वारा तिरंगा फहराने की कोशिश में काली दास व जगतू हाजरा ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।
लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के दमन से सेनानियों के हौसले पस्त नहीं हुए। जिले में सेनानियों की फौज जोरशोर से उभरी तथा पूर्व के वरिष्ठ सेनानी पं. रामाधार द्विवेदी, कन्हैया लाल वर्मा, कमला नंद विश्वास, धनुषधारी चौधरी, हरिलाल झा, नागेश्वर झा, बुद्धिनाथ ठाकुर, सूर्यानंद साह, फणीश्वर नाथ रेणु, बोधनारायण सिंह, गणेश लाल वर्मा आदि की अगुआई में देश की आजादी का संघर्ष चलता रहा।
(Source: Jagran press doc.)
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